बहुभागीय पुस्तकें >> तोड़ो, कारा तोड़ो - 5 तोड़ो, कारा तोड़ो - 5नरेन्द्र कोहली
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तोड़ो, कारा तोड़ो का पाँचवां खण्ड है ‘संदेश’। स्वामी विवेकानन्द जो संदेश सारे संसार को देना चाहते थे, वह इस खण्ड में घनीभूत रूप में चित्रित हुआ है....
ओली बुल समझ नहीं पाए कि सेरा के मन में क्या था। उन्होंने केवल इतना ही
देखा कि उनका अपना मन आकांक्षाओं के सर्पों के दंश से तिलमिला रहा
था।....और सेरा के पिता उनकी ही ओर आ रहे थे।
जोसेफ थॉर्प तो उनकी मेज़ तक नहीं आए, कुछ अन्य महिलाओं ने आकर ओली बुल को
घेर लिया। वे उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका अपहरण जैसा कर, उन्हें वहाँ से
उठा ले गईं। उन महिलाओं की कल्पना में भी नहीं आया होगा कि सेरा से दूर कर
उन्होंने ओली बुल के मन को किस प्रकार लहूलुहान कर दिया है।
समारोह के पश्चात् जब घर में एकांत हुआ तो पिता ने पूछा,
‘‘क्या बातें हुईं मिस्टर बुल से
?’’
‘‘कुछ विशेष नहीं।’’
सेरा ने कहा, ‘‘वे हम दोनों की अवस्था के अंतर के
विषय में संकेत कर रहे थे।’’
‘‘भगवान की कृपा है कि वह इस बात को समझता
है।’’
पिता बोले, ‘‘नहीं तो ये कलाकार किस्म के लोग
किशोरियों को
बहका ले जाने का प्रयत्न ही नहीं करते, प्रायः उसमें सफल भी हो जाते
हैं।’’
‘‘वे वैसे नहीं हैं।’’ सेरा ने
धीरे से कहा।
पिता चौंके। उस स्वर में ओली बुल के प्रति जो सम्मान था, वह पिता को अच्छा
नहीं लगा।
‘‘वे तुम्हें अच्छे लगते हैं ?
‘‘हाँ !’’ सेरा ने निःसंकोच भाव
से कहा, ‘‘क्या इसमें भी कोई दोष है ?’
‘‘तुम्हें संगीत अच्छा लगता है या संगीतकार
?’’ माता ने हस्तक्षेप किया।
‘‘मुझे दोनों में कोई अंतर नहीं
लगता।’’ सेरा अब
कुछ सावधान हो चुकी थी, ‘‘मैं समुद्र और उसकी लहरों
को पृथक
नहीं कर पाती।’’
‘‘संगीत अच्छा लगने की बात मैं समझ सकता
हूँ।’’
पिता ने कहा, ‘‘सारा यूरोप और अब अमरीका भी उसकी
प्रशंसा करता
है।.....किंतु ओली बुल क्यों अच्छा लगता है तुम्हें ? क्या उसका यश
तुम्हें मुग्ध करता है ? उसकी कीर्ति तुम्हें आकर्षित करती है ? सम्मोहित
हो उसकी ख्याति से ?’’
‘‘यश ? नहीं।’’ सेरा ने कहा,
‘‘मुझे उनकी सात्त्विकता मुग्ध करती
है।’’
‘‘तुम एक संगीतकार की प्रशंसक हो
या.....?’’ माता
ने पूछा, ‘‘सात्त्विकता मुग्ध करती है का क्या
तात्पर्य ?
क्या तुम उससे प्रेम करती हो ?’’
सेरा ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया। माता और पिता दोनों ही साँस रोके
उसकी ओर देखते रहे।
‘‘मैं नहीं जानती कि प्रेम क्या होता
है।’’ अंततः
उसने कहा, ‘‘मेरा मन होता है कि मैं अपना अधिक से
अधिक समय
उनके साथ व्यतीत करूँ।....’’ और सहसा सेरा ने स्वयं
को
संशोधित किया, ‘‘माँ ! सच पूछो तो मैं उनके साथ विवाह
करना
चाहती हूँ। उनकी पत्नी बनना चाहती हूँ।’’ माँ कोई
विशेष
विचलित नहीं दिखीं; किंतु पिता को जैसे काठ मार गया।
‘‘क्या कह रही हो तुम ?’’ वे
चिल्लाए,
‘‘वह साठ वर्षों का वृद्ध और तुम बीस वर्षों की
किशोरी।....’’
‘‘तो ?’’ श्रीमती थॉर्प ने अपनी
पत्नी के ये तेवर
देखे तो संभल गए। जानते थे कि उससे पार पाना उनके लिए कठिन था। बेटी को तो
वे फिर भी समझा सकते थे; किंतु अपनी पत्नी के हठ के पर्वत को तोड़ना उनके
लिए संभव नहीं था।
‘‘बेटी ! संगीत का महत्त्व मैं जानता
हूँ।’’ वे
बोले, ‘‘किंतु संगीत न तो जीवन के लिए आवश्यक धन में
बदला जा
सकता है, न वह वृद्ध पुरुष के शरीर को युवा बना
सकता।’’
‘‘जानती हूँ।’’ सेरा ने कहा,
‘‘किंतु
वह मनुष्य की आत्मा को निर्मल बना सकता है, बना देता
है।’’
‘‘तुम कुछ धैर्य रखो।’’ श्रीमती
थॉर्प ने अपने
पति को एक प्रकार से डाँटा, ‘‘तुम तो ऐसे विचलित हो
गए हो,
जैसे सेरा ने ओली से विवाह ही कर लिया हो।’’ वे अपनी
पुत्री
की ओर मुड़ीं, ‘‘तुमने उन्हें कोई वचन दिया है क्या ?
अपने
प्रेम की स्वीकृति दी है ?’’
‘‘नहीं माँ ! हममें ऐसी कोई बात नहीं हुई
है।’’
सेरा ने कहा, ‘‘मैं तो आपको केवल अपने मन की बात बताई
है।’’
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